(जय माँ दुर्गा)
मुग़ल बादशाहों का भी दम्भ शक्तिपीठ ने तोड़ दिया
हिन्दू धर्म पुराणों अनुसार जहाँ जहाँ सती रानी के अंग,वस्त्र,आभूषण गिरे,वहां वहां शक्ति पीठ अस्तित्व में आया। ये अस्थान अत्यंत पावन तीर्थ बने।
हालाकि देवी भागवत में 108 शक्ति पीठो का वर्णन मिलता है वाही देवी गीता में 72 एवं तंत्रचुडामणि में 52 शक्तिपीठ बतलाये गए है तथा देवी पुराण में 51 शक्ति पीठो कि चर्चा कि गई है।
देश विभाजन के बाद भारत में सिर्फ 42 शक्तिपीठ रह गये शेष क्रमशः पाकिस्तान,बांग्लादेश,श्रीलंका,तिब्बत और नेपाल में है।
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है ज्वालामुखी देवी मंदिर जिसे जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। ये मंदिर माता के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है यहाँ देवी सती रानी की जीभ गिरी थी।
यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं। इन नौ ज्योतियों के नाम और दर्शन इस प्रकार है 1.चाँदी के आले में सुशोभित ज्योति महा काली है जो मुक्ति देने वाली है। 2. माँ अनपूर्णा की ज्योति जो भंडार भरने वाली है। 3. माँ चंडी कि ज्योति शत्रुओं का विनाश करने वाली है। 4. माँ हिंगलाज की ज्योति समस्त व्याधियों का नाश करने वाली है। 5. माँ विंध्यवासिनी कि ज्योति शोक से छुटकारा देने वाली है। 6. माँ महा लक्ष्मी कि ज्योति धन देने वाली है। 7. माँ शारदा कि ज्योति विद्या देने वाली है। 8. माँ अम्बिका कि ज्योति संतान सुख देने वाली है। 9. माँ अंजना कि ज्योति भक्तो को आयु व सुख प्रदान करती है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा जन समूह देखकर बादशाह के सिपाहियों ने अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।
बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू भगत ने उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज जवाला माँ प्रचण्ड शक्ति शाली है वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन को जाते हैं।
अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।
यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई | उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं।| तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन सोने का छतर चढ़ाया | लेकिन उसके मन में अहंकार था इस कारण माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया
आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं | (शेष आगे पढ़े ..)
(प्रिंस राज )